जैसे ही मैंने श और ष में अंतर पूछा, बाबा का चेहरा झुंझला गया |

“ओह ! तो अब क्या व्याकरण भी पढ़ाना पड़ेगा ?”

ऊपर की तरफ देखते हुए बाबा बोले – “इसे गीता पढ़ानी थी ! इसे तो क ख ग भी सिखाना पड़ेगा पहले !!!”

अब फिर से बातें सर के ऊपर से जा रही थी, ये किस से बात कर रहे थे ? क्या ये किसी के कहने से मुझसे मिल रहे हैं ? वैसे बाबाओ की बात समझ भी नहीं आती | कब बड़बड़ाते हैं, कब चिल्ला देते हैं, कुछ समझ में नहीं आता |

“तेरा ध्यान किधर है मूर्ख ? स को 3 बार बोल” – बाबा का आदेश हुआ |

मैंने तीन बार स को धीरे-धीरे बोला |

“जीभ कहाँ लगी है ?” – बाबा अब शायद थोड़े गुस्से में थे या शायद झुंझलाये हुए थे | होठो की मुस्कराहट कहीं गुम हो गयी थी और अब थोड़ा कड़क हो गए थे |

मैंने बताया – “जीभ दांतों पर लगी है और हवा बाहर जा रही है |”

“अब श बोल 3 बार और बता जीभ कहाँ लग रही है ?” – बाबा रोष में बोले |

मैंने बताया – “दांतों से पहले थोड़ा ऊपर तालू में लग रही है और हवा निकल रही है |”

“अब जीभ को और पीछे लेकर के जा और हवा निकाल और बोल और देख मुंह से क्या निकलता है !” – बाबा का फिर से निर्देश आया |

मैंने जीभ को और मोड़ा, पीछे लेकर के गया और हवा निकाली | मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा श दब गया है और एक भारी से आवाज निकल रही है |

“यही ष का उच्चारण है |”– बाबा ने थोड़ा शांत होते हुए बोला |

“कभी सुना है – सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् । स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङुलम् || – अगर सही उच्चारण नहीं होगा तो इसको कैसे बोलोगे ?” – अब वो थोड़ा मुस्कुरा भी रहे थे | शायद समझाने के उद्देश्य से उन्होंने ये बोला ।

पर मेरी परेशानी तो कुछ और ही थी ! मैंने बाबा को अपनी परेशानी बताने में देर भी नहीं की – 

“मैंने तो अभी तक सहस्रशीर्षा पुरुख ही सूना था ! ये सहस्रशीर्षा पुरुषः कैसे हो गया ? मैंने क्या गलत सुना है बाबा ?”

“उच्चारण जीभ की लचक पर आधारित होता है | जीभ जिसकी जितनी लचीली होगी, वो उतना साफ़ उच्चारण कर पायेगा ! दक्षिण भारत के लोग अच्छा उच्चारण करते हैं, क्योंकि वहां गर्मी ज्यादा पड़ती है और शरीर और जीभ में लचक होती है जबकि पंजाब के, कश्मीर के, उत्तराखंड के पंडित सही से उच्चारण नहीं कर पाते क्योंकि वहां ठण्ड पड़ती है और जीभ कठोर हो जाती है, लचक नहीं रह पाती, ऊपर से प्रयास भी नहीं होते | जब जीभ नहीं मुड़ेगी, तो ष का ख हो जायेगा | पंजाबियों में देखना, वो भ्राता को प्रा ही बोल पाते हैं | गुरु गोविन्द सिंह जी कौन थे, गुरु ही तो थे और बाकी कौन थे, उनके शिष्य थे लेकिन शिष्य के लिए जीभ का मुड़ना जरुरी है, जो पंजाबियों के लिए मुश्किल है इसलिए वो शिष्य की जगह सिख हो जाता है और इस तरह से शिष्य आसानी से सिख हो जाता है | अंग्रेज कभी त नहीं बोल पाते क्योंकि वो हमेशा ट ही बोलते रहे हैं अंग्रेजी में और त का कभी अभ्यास भी नहीं किया सो वो तुम की जगह जब भी बोलेंगे टुम बोलेंगे | जीभ की लचक, कम ज्यादा होने से, उच्चारण में दोष पैदा करती ही है |” – बाबा ने उच्चारण में जीभ के रोल को समझाते हुए कहा |

“ये तो बड़े आश्चर्य की बात बताई बाबा, इसका मतलब तो ये हुआ कि जो आदमी गूंगा है, वो बेचारा तो कभी बोल ही नहीं सकता, वो तो कोई मन्त्र भी नहीं पढ़ सकता ! मेरे उच्चारण पर इत्ता ध्यान दे रहे हैं, उसको क्या बोलेंगे ?? हमारे उच्चारण में दोष है तो भाव बदल रहा है, वो तो बोल ही नहीं सकता ! उसका भाव कैसे पता चलेगा ?? वो साधना कैसे करेगा ?” – मैंने इस बार एक ओवर की छहों गेंदे एक ही बार में डालने की कोशिश की |

“ईश्वर साधना के लिए मन्त्र नहीं – योग की आवश्यकता होती है | जाप में कितने लोगों को बोलते हुए सुना है ? जाप मन में होता है ! मन की आवाज ज्यादा तेज है, शब्द वहां तक नहीं पहुँच पाते | जिसके पास जिह्वा है, वो स्तुति कर सकता है, अपने मन के भावों को प्रकट कर सकता है, पर जो नहीं प्रकट कर सकता है, उसका भी कोई दोष नहीं है, वो मन में ही अपनी बात कह सकता है |”

ऊपर की तरफ ऊँगली करके बाबा बोले – “उसके पास सब पहुँचता है | कृष्ण जी ने खुद को यज्ञों में जप यज्ञ इसीलिए कहा है | जिसके हाथ नहीं है, क्या वो नमन नहीं कर सकता ? अगर हाथो से नमस्कार नहीं कर पायेगा तो घुटनों के बल बैठ कर, गर्दन को नीचा करके नमन कर लेगा | योग के लिए, इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती |”

“बाबा आपने तो बड़ी गूढ़ बात बतायी है बिलकुल ऋषियों मुनियों जैसी |”- मैंने बाबा को मस्का लगाने की कोशिश की | पर उनके दिमाग में पता नहीं क्या चल रहा था –

बोले – “किसके जैसी ?”

“ऋषियों मुनियों जैसी |” – मैंने दोहराया |

“रिशी नहीं होता है, ॠषि होता है |” – बाबा बीच बीच में कड़क हो जा रहे थे |

अब फिर दिमाग का दही ! मैं तो ऐसे ही बोलता और सुनता आ रहा हूँ | मैंने बाबा से पूछा – “बाबा, क्या गीता पढने के लिए ये सब भी आवश्यक है ? क्या हम सीधे गीता की बात नहीं कर सकते हैं ?”

बाबा बोले – “बेटा, PhD करने के लिए शुरू की कक्षाएं तो पढनी ही पड़ेंगी न और वैसे भी मैं जो बता रहा हूँ, वो कहीं न कहीं गीता से ही जुड़ा हुआ है | सबमें गीता है और गीता में सब है | जल्दी क्या है ? वो भी सीखेंगे | पहले ॠ बोलना सीख | जब उच्चारण ठीक होगा, तो चीजें आसानी से समझ में आयेंगे | विषयांतर मत कर |”

मैंने पूछा – “बाबा, पर हम तो ऐसे ही बोलते आ रहे हैं | कभी किसी अध्यापक ने नहीं बोला कि हम गलत बोल रहे हैं, कोई अध्यापक तो टोकता, कोई तो बोलता, अगर गलत होता तो !”

“बेटा ! ज्ञान लुप्त हो रहा है, तू कलियुग में जी रहा है, धीरे-धीरे सब भ्रष्ट हो जाएगा, इक्का दुक्का ही बचेंगे, जिन्हें ज्ञान प्राप्त होगा | और किसी ने टोका नहीं का मतलब ये नहीं होता कि वो सही है | खुद से अनुसंधान करना चाहिए | अब बातें मत घुमा, र को तीन बार बोल” – फिर से बाबा का आदेश हुआ |

मैंने र को तीन बार बोला |

“अब उ को तीन बार बोला और देख जीभ कहाँ लग रही है !” – मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे किसी पहली कक्षा के बच्चे को क, ख, ग पढाया जा रहा है, पर बात तो ये भी थी कि कभी किसी ने ऐसे पढाया भी नहीं था |

मैंने उ को तीन बार बोला और देखा कि जीभ ऊपर जा ही नहीं रही थी, नीचे ही चिपकी हुई थी | मैंने बाबा को बताया कि –

“जीभ तो नीचे ही है, कहीं लग ही नहीं रही है |”

अब बाबा बोले – “अब उ बोल और जीभ को ऊपर ले जा और ऊपर के तालू से पहले वहां रोक दे, जहाँ तक कि जीभ उ की आवाज में व्यवधान न पैदा कर दे और र जैसी आवाज व्यवधान के साथ न निकले | तीन बार ऐसा कर |”

मैंने कोशिश की और एक विचित्र सी आवाज निकली जो पहले कभी नहीं निकली थी | कुछ रु जैसी आवाज थी पर थोड़ी परेशानी से निकल रही थी |

अब बाबा बोले –

“अब जीभ को और पीछे ले जा, जहाँ से ष का उच्चारण हुआ था और इसी प्रकार आवाज निकाल, वो जो उच्चारण है, वह ऋ का उच्चारण है |”

मैंने कोशिश की और पाया कि इस प्रकार तो मैंने कभी ऋ नहीं बोला था इस से पहले | पर अब एक बात और विचित्र थी – कि फिर उत्तर भारत के लोग ऋ का उच्चारण रि जैसा क्यों करते हैं ? बाबा एक बात बताते थे तो मेरे दिमाग में 2 सवाल यक्ष रूप में खड़े हो जाते थे ! मैं उत्तर भारतीयों के ऋ और रि के उच्चारण के बारे में बाबा से कुछ पूछ पाता, इस से पहले बाबा ने ही मेरे से पूछा –

“चाय पिएगा ?”

क्रमशः

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Aghori baba ki Gita, अघोरी बाबा की गीता

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