शास्त्र – क्या सच, क्या झूठ : भाग 3


शास्त्र – क्या सच, क्या झूठ, खंडन 3
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इस पोस्ट में निम्न दी गयी सोशल मिडिया वायरल पोस्ट, जिसमें रामायण से वानरों के बारे में तथ्यहीन बातें लिखी गयी हैं, उनका स्पष्टीकरण है | इस पोस्ट को फेसबुक पर किसी ‘महर्षि जाबाली’ ने लिखा है और उनकी पोस्ट का लिंक, नीचे कमेन्ट में दिया गया है | पहले आप उनकी पोस्ट पढ़ें, फिर उसके नीचे, इस पोस्ट का खंडन पढ़ें |
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वानर वास्तव में द्रविड़ राज्य किष्किंधा के निवासी थे, महाकाव्य में दिये गये भौगोलिक वर्णन के आधार पर हम कह सकते है कि वर्तमान में सम्पूर्ण मैसूर (कर्नाटक) तथा आंध्र प्रदेश का अधिकाशं भाग किष्किंधा कहलाता था। वर्तमान कन्नड़ और तेलुगू भाषाभाषी मूल रूप से एक भाषाभाषी वानर जाति की संतान है।
ऐसा प्रतीत होता है कि वानरों की ईश्वर व स्वर्गनरक में कोई आस्था नहीं थी। संभवतया आर्यो के संपर्क में आने तक उन्होने इसके विषय में सुना भी नहीं होगा।
न तो उनके मन्दिर थे और ना ही कोई धार्मिक ग्रंथ, यज्ञ तथा तप में जीवन व्यतीत करने वाले ऋषि भी उनमें नहीं थे। पारमार्थिक सुख की अपेक्षा भौतिक सुख ही उनका लक्ष्य था, जब तक वे स्वतंत्र रहे और जब तक उनका देश अयोध्या का उपनिवेश नही बना तब तक वे जातिप्रथा व अस्पृश्यता के अभिशाप से भी मुक्त रहे।
 
वानर सभ्यता आर्य सभ्यता से किसी भी रूप में न्यून नहीं थी, वाल्मीकि स्वयं स्वीकार करते हैं कि उनकी राजधानी में चौडे मार्ग और भव्य भवन थे, लोग बढिया कपड़े पहनते थे व इत्र का इस्तेमाल करते थे, महिलाए कमर, पावों और उंगलियों में रत्नजटित सोने के आभूषण पहती थी, उनमें बहुमूल्य रत्न विक्रेता भी थे, सुग्रीव के अन्तःपुर में कई सुन्दरियां थी। उसके भवन में जब लक्ष्मण गये तो उन्होने सोने व चांदी के पलंग देखें, जिन पर अनुपम कलाकृतियाँ अंकित थी। साथ ही ध्वनि भी सुनी थी। वहां के ‘सेवक पुष्ट, बहुमूल्य वेशभूषाधारी तथा प्रसन्न’ थे और अतिथियों की तरफ पूरा ध्यान देते थे। यद्यपि वानर शाकाहारी प्रतीत होते हैं पर संभवतया उन्हें मधु (मदिरा) पान आदि से किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट नही थी। [किष्किंधा काण्ड, सर्ग – 33]
 
यदि इस प्रकार की जाति को असभ्य व मूर्ख रूप में वर्णित किया गया है और उन्हें पशु व वानर कहा गया है तो इसमें कन्नड़ तथा आंध्रजनों को कुछ अनुचित नहीं मानना चाहिए (आज न तो कोई पूर्ण शुद्ध आर्य है और न कोई द्रविड़)। वास्तव में यह तो सदा से चली आ रही एक परम्परा रही हैं कि जो साम्राज्यवादी या विजेता होता है वह सभी उत्तम और प्रशंसायोग्य बातों के लिए पराजित को उत्तरदायी ठहराता है। संभवतया कलियुगी यूरोपीय सम्राज्यवादियों ने इसी भारतीय आर्य परम्परा का अनुसरण किया हैं।
 
यदि वानर बंदर होते तो इक्ष्वाकु कुल की सेवा के उपलक्ष्य में भरत हनुमान को पत्नी रूप में 16 कन्याएं, स्पष्टतः आर्य कन्याएं, कैसे प्रस्तुत करते? {युद्धकाण्ड, सर्ग-127}
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शास्त्र – क्या सच, क्या झूठ, खंडन 3
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आशा है, आप सभी ने ये पोस्ट पढ़ ली होगी । इस बात को समझना आवश्यक है कि रामायण पर पिछले 70 वर्षों से लेकर आजके अमीश त्रिपाठी तक, बहुत से उपन्यासकारों ने अपने अपने तरीके से लिखा है । अपनी कहानी को सही सिद्ध करने के लिये उन सभी ने नयी नयी थ्योरी दीं हैं । अमीश रामचन्द्र जी से सीता स्वयंवर में मछली की आंख तक फुड़वा देते हैं । शिव ट्रिनिटी में,शिव जी को साधारण मनुष्य तक सिद्ध कर देती है । जो लोग इनको पढ़कर बड़े हुए हैं या इनको एक बार पढ़ लेते हैं, वो इनकी थ्योरी को असली मानकर, रामायण की अपने हिसाब से, व्याख्या करने लगते हैं । लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि असल सत्य क्या है ? इसके लिये प्रमाण वो माना जायेगा, जो सबसे पुराना और पहला है अर्थात वाल्मीकि रामायण ।
 
इन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि वानरों की ईश्वर व स्वर्ग नर्क पर कोई आस्था नहीं थी । ये इन्हें कैसे और किस तथ्य से ज्ञात हुआ, ऐसा इन्होंने नहीं लिखा है । ऐसे ही अगर मगर से एक तथ्यहीन कथानक बनाया जाता है। ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि वानरों की स्वर्ग नरक पर आस्था न हो क्योंकि बालि स्वयं स्वर्ग के राजा इंद्र का पुत्र था और सुग्रीव सूर्य पुत्र थे (वा.रा., बालकांड, सप्तदश सर्ग, श्लोक 31), हनुमान जी स्वयं राम के परम् भक्त थे । तो ऐसा किस तथ्य से कहा जा सकता है कि वानर देवताओं और स्वर्ग नर्क को नहीं मानते थे, ये समझ से परे है पर पोस्टकर्ता ने अपनी सारी पोस्ट इस एक मनगढंत कथानक के बेस पर लिख दी है।  आगे देखें !
 
पोस्टकर्ता ने बड़ी आसानी से वाल्मीकि का नाम लेकर मधु का सरल अर्थ मदिरा कर दिया है, है ना कमाल ! भाई, मद्य माने मदिरा, मधु माने शहद । पर जब आप मनगढंत लिखने का ठान चुके होते हैं तो जानकर ऐसी गलतियां करते हैं ।
 
आगे लिखता है कि इस प्रकार की जाति को यदि कोई मूर्ख या असभ्य बताता है (इन्हें ऐसा लगता है कि रामायण में इनको मूर्ख व असभ्य बताया गया है) जबकि इनके गुणों का तो वर्णन ऐसा दिया है, जिसे सुनकर विश्वास ही नहीं होता । बालकांड के ही सप्तदश सर्ग में  इनकी पूरी उतपत्ति, बलविस्तार का वर्णन है और कौन कौन वानर, यथा नल, नील, बालि, सुग्रीव आदि किन देवताओं से पैदा हुए, ये स्पष्ट लिखा हुआ है । रामचंद्र जी सुग्रीव की मदद करते हैं, उसे मूर्ख और असभ्य समझते हुए ? अंगद को भेजते हैं, दूत बनाकर, तो क्या वो उसे मूर्ख और असभ्य मान सकते है ? अंगद ने किस चतुराई से रावण को बातों ही बातों में नीचा दिखा दिया, ये किससे छुपा है ! अंगद के संवाद से, वो राजनीति में निष्णात, वाक्पटु और विद्वान नजर आते हैं तो फिर किस तथ्य पर इन पोस्ट करने वाले को, वानर मूर्ख और असभ्य लगे, ये ही जाने ।
 
अंत में इन्होंने कहा है कि वानर बन्दर नहीं होते क्योंकि इनके हिसाब से भरत ने हनुमान जी को 16 कन्याएं पत्नी स्वरूप भेंट की । मतलब इससे ज्यादा मनगढंत बात क्या हो सकती है ? हनुमानजी, ब्रह्मचारी हैं, ये कौन नहीं जानता । पूरी वाल्मीकि रामायण में कहीं भी हनुमान जी कियो पत्नी का जिक्र नहीं है, इन्होंने पता नहीं कौन सी रामायण (कौन सा उपन्यास) पढ़ लिया है, जिसके अनुसार हनुमान जी को पत्नी स्वरूप स्त्रियां भेंट की गई ।
 
अब जिसने वाल्मीकि रामायण नहीं पढ़ी है, वो इस भ्रामक, तथ्यहीन पोस्ट को पढ़कर, हाँ, हाँ में मुंडी हिलाएगा और चार लोगों लोगों को बोलेगा कि रामायण में वानरों को मूर्ख, असभ्य बताया गया है, वो देवताओं और स्वर्ग नर्क को नहीं मानते थे, हम द्रविड़ हैं, उनकी सन्तान हैं, हम भी नहीं मानेंगे । वो सब ऐसी भ्रामक पोस्ट पढ़कर मान लेगा लेकिन वाल्मीकि रामायण नहीं पढ़ेगा तो असल मूर्ख कौन हुआ ? और ऐसे मूर्खों के दिमाग में शास्त्रों, रामायण, महाभारत आदि के बारे में गलत जानकारी देने वाला कौन हुआ ? और हद देखिये, पोस्टकर्ता खुद को महर्षि कहता है । है ना कमाल !!!
 
इसीलिये बार बार कहता हूँ, असली शास्त्र, ग्रन्थ पढिये ऐसे फर्जी महर्षियों के चक्कर में न पड़ें।
 
पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा
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