कर्म और भाग्य में कौन बड़ा है ? – भाग २
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कर्म और भाग्य को लेकर अक्सर लोग अपने मत देते हैं और दूसरे मतों को नकारते हैं | लेकिन ऐसे ही यदि हम दूसरे पक्ष बिना सुने ही नकार देंगे तो फिर शास्त्रों को जानेगे कैसे ? शंकराचार्य शास्त्रार्थ करते थे और पूरे भारत में भ्रमण करके उन्होंने शास्त्रार्थ किये | यदि वो दुसरे पक्ष को बिना सुने ही कह देते – अरे, तू तो निरा मूर्ख है, तुझे कुछ नहीं पता | मुझे ही सब पता है तो क्या धर्म की रक्षा हो पाती ?
जब आप शास्त्रीय चर्चा करते हैं तो किसी भी विषय को विभिन्न एंगल से देखना चाहिए, सुनना चाहिए | उसे सीधा रिजेक्ट नहीं करना चाहिए | जो कहते हैं कि कर्म ही सबकुछ है, उन्हें भाग्यवादियों को भी सुनना चाहिए और जो कहते हैं भाग्य ही सबकुछ है, उन्हें भी कर्म्वादियों को सुनना चाहिए | जब दोनों को सुनेंगे तभी तो तर्क और वितर्क हो पायेगा | तर्कशास्त्र को समझना चाहिए, तब ही किसी निष्कर्ष पर पहुचना चाहिए | इसी क्रम में, आज चर्चा करेंगे, कर्म और भाग्य के कुछ उदाहरणों की | यदि आपने पिछ्ला वीडियो नहीं देखा है, तो इसे देखने से पहले, कर्म और भाग्य को अच्छे से समझने के लिये, इस सिरीज का पिछला वीडियो कमेन्ट बॉक्स में दिए लिंक से देख लें |