कर्म और भाग्य – 1


कर्म और भाग्य ! कौन बड़ा है ? कर्मवादी बोलते हैं, कर्म ही महान है (और भाग्यवादी बोलते हैं कि भाग्य से ही सबकुछ होता है | कौन सही है और कौन गलत ? कैसे पता करें ? लोग अक्सर अपनी सुविधा के अनुसार किसी एक को सही और दुसरे को गलत कह देते हैं | कोई एक उक्ति पढ़कर, कोई एक सूक्ति पढ़ कर, कोई एक सुभाषित पढ़कर, उसे ही अंतिम सत्य मान लेते हैं | क्या ये विधि सही है, शास्त्रों को समझने की ? क्या हम किसी भी एक बात के पक्ष में कुछ श्लोक, सूक्ति, सुभाषित आदि पढ़कर उस विषय को समझ सकते हैं ? निर्णय कैसे करें ?

विद्वान् की आँखें शास्त्र (वेद) होते हैं | जब आप सम्यक पढ़ाई करते हैं तो आपको दोनों बातों का समुचित अध्ययन करना पड़ेगा | शास्त्रों को पढ़कर, उसका निचोड़ निकालना पड़ेगा | उसके लिए, कर्मवाद को भी समझना पड़ेगा और भाग्यवाद को भी | एक को महान समझकर और अंतिम समझकर दुसरे को नकारना नहीं चाहिये | किसी विषय को समझने के लिये, उसे सभी तरफ से देखना चाहिये | जब आप उस विषय से सम्बंधित सभी पक्षों को जान लेंगे तब आप कुछ नया खोज पायेंगे | वैज्ञानिक, जब खोज करता है तो वो विज्ञान के नियम के हिसाब से नहीं चलता है | विज्ञान तो कहता था कि बिजली नहीं बन सकती, आदमी चाँद पर नहीं जा सकता, टेलीफोन नहीं हो सकता लेकिन सब हुआ ! जब तक आप, अपनी सुविधा के, अपनी मान्यताओं के, विपरीत नहीं पढेंगे, तब तक आप तत्त्व को नहीं समझ सकते हैं | अपनी मनमानी व्याख्या मत कीजिये, खुद जो सही मानते हैं, उसे ही अंतिम मत समझिये | उसके परे भी बहुत कुछ है, जो पढने, मथने और जानने योग्य है | सम्यक अध्ययन कीजिये |

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